कहीं से कुम्हलायी सी थी रमा !शादी ठीक हुई थी और रिश्ता कमला चाची लेकर आयी ,बड़ाई इतनी कि बाउजी सबसे पहले इस लड़के को ही देखना चाहते थे अगर पसंद न आया तो ही दूसरे रिश्ते को देखेंगे, ऐसा सोंचकर बैठे थे!
“आप भी न बस किसी की बातों में ऐसे आ जाते हैं कि बस और कुछ सोंचते नहीं ,उसका तो यही काम है ,छोटी सी विवाह की एजेंसी खोल रखी है कमला ने अपने क्लाइंट को लेकर सच -झूट न बोले तो काम ही कैसे चले उसका ? माँ ने अपनी चिंता जताई |
” ऐसे ही धुप में नहीं किये बाल सफेद , पहले ढंग से देखूगा तभी हाँ करूँगा ,पर इस लड़के को देखने के बाद ही कोई और लड़का देखूंगा | जितनी बड़ाई कमला ने घर परिवार और लड़के की, की है उसमे से 20 % ही सच हो तो हमारी लड़की एक सुरक्षित हाथों में होगी और ऐसा न हो तो हज़ार रूपये ही जायेंगे हमारे ,जो मैंने खुश होकर कमला को हाथ में दिया था ,सोचूंगा अपनी बच्ची की नज़र उतार दी ” बाउजी ने हंस कर कहा |
पहली बार में ही लड़का और उसके परिवार से मिले बाउजी और उनकी पारखी नज़रों ने अपनी बेटी के लिए उन्हें पसंद कर लिया | चटपट सगाई और तीन महीनो में शादी |
बाउजी ने इस बीच परिवार और लड़के का स्वाभाव और चालचलन का अपने तरीके से पता लगवा लिया निश्चित होकर शादी की तैयारी में जुट गए |
रमा कही से बड़ी बैचैन थी ना ही उसे यह परी कथाओं सी शादी लग रही थी ना ही उसे मुकेश में कोई हीरो जैसी बात दीख रही थी | इस दरम्यान जब भी बात हुई लगा खड़ूस ही है | शब्दों को चबा चबा कर बोलता है ,कितना कम बोलता है ! सरकारी अफसर है तो क्या हुआ ?किसी चुप्पे से नहीं करनी उसे शादी ! हाय ! यह क्या हो रहा है उसकी ज़िंदगी के साथ ! और बाउजी ऐसे खुश जैसे हीरा मिल गया हो ! हुंह !
देखते देखते शादी का दिन भी आ गया |
घर के बाहर बारात लगाते लगाते काफी समय हो गया था ,तो जयमाल के फ़ौरन बाद शादी की रस्म मुहूर्त की वजह से शुरू कर दी गयी | शादी के बीच में ही लड़केवालों की तरफ से आरामदायक कुर्सी न होने की बात कही गयी, वैसे बात छोटी सी ही थी पर बिगड़ी तो बिगड़ती ही चली गयी | बात बहस से बढ़ चली थी|
दहाड़ते हुए मुकेश के चाचा जी ने कहा “जहाँ हमारी ज़रा सी बात की इज़्ज़त नहीं वहां रिश्ता भी क्या करना ? तू बैठा रहेगा यूँ ही पीढ़े पर, उठ यहाँ से इससे अच्छे रिश्ते मिलेंगे हमें ! शराब के नशे में बात हाथ से निकलने वाली हो गयी थी |
पुरे मंडप में सुई भी गिरे तो सुनाई पड़े | रमा अवाक थी !
मुकेश ने अपने पिता को अपने पास बुलाकर धीरे से कहा ” इन्हें संभाल कर ले जाएँ और सुलवा दें |जिन्हें रुकना हो यहीं रुके, जिन्हें इनके साथ जाना हो वो भी होटल वापिस चले जाएँ , सुबह विदाई के बाद सब वापिस साथ चलेंगे”|
धीरे से कही वो बात इतनी धीरे से कही गयी थी कि रमा के आँखों को नम कर गयी सहसा ! शायद अब उसे किसी भी आश्वासन और पुष्टीकरण की ज़रूरत नहीं थी | उसके इज़्ज़त करनेवाला और उसकी खुशियों को अपना समझनेवाले के हाथों में उसके हाथ थे ,मंडप में मंत्रोच्चार गूंज रहा था | विवाह की पवित्र अग्नि में उसके सारे संशय धू -धू कर जल रहे थे |
मेरे विचार : कभी भी बाहरी व्यक्तित्व पर किसी को ना आंकें | जो आपकी इज़्ज़त को अपनी समझता हो ,जिसके कंधे पर सर टिका कर आपको आराम हो जाता हो,उसे दिल से अपना माने|
-अमृता श्री
