
बंद करता ,
हूँ जब ,
अपनी आंखे ,
तेरा चेहरा सामने आता है ,
जैसे बादलों को चीर कर ,
खिल जाती है कोई धुप !
क्या कहूं ?
जब बात करते करते ,
खुल कर हंस पड़ती हो ,
तुम प्रिय ,
खिल जाता है मेरा भी मन !
जैसे किसी मरुभूमि में ,
बारिश की पहली बून्द पड़ी ,
हो ,
जैसे किसी नन्हें पैरों ने ,
पहली बार पायलों की रुनझुन सुनी ,
हो !
क्या कहूं ?
कहती हो न तुम ,
कि मैं कुछ नहीं बोलता ,
कभी कर देता हूँ तुम्हें अनदेखा !,
सच कहूं तो कभी नहीं होता ऐसा ,
हर पल तेरे संग को जीता हूँ ,
हर पल घूंट घूंट पीता हूँ ,
तेरे बिन रीता रीता हूँ !
क्या कहूं ?
-अमृता श्री
क्या कहूं ?
जब बात करते करते ,
खुल कर हंस पड़ती हो ,
तुम प्रिय ,
खिल जाता है मेरा भी मन !
जैसे किसी मरुभूमि में ,
बारिश की पहली बून्द पड़ी ,
हो ,
वाह। दिल को गुदगुदाती पंक्तियाँ।👌👌
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Thanks 🙂
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