निधि के हाथ तेजी से चल रहे थे ,आज सुहानी दीदी के रिश्तेदार आये हुए थे !वैसे आये तो थे जेठानी के रिश्तेदार पर उसे जेठानी कोई दूसरी कभी लगी ही नहीं! पहले मिकी नहीं हुआ था तो आसानी से हैंडल हो जाता था सब ,अब ज़रा मुश्किल होती है ,पर वो अपना पूरा देने का कोशिश करती है | सुहानी जीजी ,उसकी जेठानी भी तो उससे इतना प्यार से बात करती है | वो तो बस उनकी बातों पर बिछ जाती है |
चाय के साथ नाश्ता लेकर जल्दी जल्दी कमरे में जा ही रही थी कि सुहानी जीजी की मामी की आवाज़ आयी ” कितने प्यार से स्वागत किया तेरी देवरानी ने,सास भी तेरी गाय है गाय ,सबको बड़े अच्छे से बांध रखा है तूने | अपना यह जादू अपनी बहन पम्मी को भी सीखा दे ,मामी अपनी बेटी के बारे में बोलने लगी|
अपने बड़ाई हांकते हुए सुहानी बोल पड़ी “क्या मामी ऐसा कुछ नहीं है ,बस सारे घर की जिम्मेदारी नितिन पर है ,अब जब वही सब करता-धरता है तो ,स्वाभाविक है, कि घर की मालकिन मैं ही हुई और आप हुई घर की मालकिन की मेहमान!
दोनों ठहाके लगा कर हंस पड़े !
निधि के पैरों के नीचे से जमीन निकल गयी | वो प्यार भाव से सब किये जा रही है और सुहानी जीजी को पैसा दिख रहा है और बाकियों को भी यही सन्देश दे रही है| तभी सुहानी दी की सहेलियां उसे कितनी बार सही रिस्पांस ही नहीं देती | अब उसे धीरे धीरे सब समझ आ रहा है |
दोनों को चाय नाश्ता देकर बाकि काम वाली कमला को समझाकर वो अपने कमरे में लौट आयी | मन में एक तूफ़ान सा चल रहा था | सारा खर्चा तो दोनों भाई मिलकर ही उठाते है और तो आजकल उसके जेठ नितिन भईया कुछ महीनो से अपने हाथ खर्चों से खींच रहे है | उसके पति जतिन ने एक बार इसकी शिकायत भी उससे की थी क्योकि बोझ उसपर ज्यादा हो रहा था तो उसने ही समझाया था कि ऊंच नीच तो होती ही रहती है ,अबकी संभाल लो बाद में आराम से भैया से बात कर लेना ,अब तो इस बात को भी चार महीने हो गए ,स्थिति वैसी की वैसी है | मन खट्टा सा हो गया ,वापस किचेन की और चल दी आखिर मेहमान का सवाल था |
अबकी कमला ही ट्रे में रखकर खाना लेकर गयी ,वो बस अरेंजमेंट देख लेगी ऐसा सोंचा | कमला खाना लगा रही थी| निधि मामी के ग्लास में पानी डाल रही थी कि मामी बोल उठी ” संभल कर बहुरिया ,धीरे धीरे जमाओं पानी को गिलास में ,नहीं तो छलक जायेगा ,ठीक वैसे जैसे जीजी की राज में ही हाथ में काबू पाना सीख लो ,नहीं तो जब अपना घर जमाओगी तब बड़ी मुश्किल होगी “|
निधि ने धीरे से हंसकर बोला “सही कहा मामी जी !संयुक्त परिवार में पली हूँ ,संभालना देख देख कर बड़ी हुई हूँ | यह घर भी कुछ अलग नहीं ! सब मिलकर घर का खर्च उठाते हैं और घर की गाड़ी आराम से चलती है | संतुलन भी है और नियंत्रण भी !
मामी और जीजी को अवाक छोड़ वो मीठे का डोंगा रसोई से लाने चली गयी |
मेरे विचार ” कभी कभी हमारे स्वाभाव की वजह से लोग हमारा फायदा उठाने लगते हैं ,अपने और सामने वाले के व्यवहार को कसौटी पर कसते रहे |
-अमृता श्री
