बहुत बार सोचा वो ख़ाली कटोरे के जादूगर के बारे में आपको भी बताऊँ ,कई बार लिखने की कोशिश भी की ,फिर आंसुओं ने आगे बढ़ने नहीं दिया | आज देखती हूँ आगे बढ़ भी पाती हूँ या नहीं !
ज़िंदगी में प्यार के बहुत सारे रूप में मिलते है सबको ,कुछ को आप पहचान लेते है ,कुछ को पहचानने में थोड़ा वक़्त लगता है | पर हाँ वो जादूगर है ,इसकी पहचान मुझे थोड़ी देर से ही हुई !
“उसने आंसुओं को पलकों से मेरे गिरने न दिया ,
सारी उम्र हमने उनकी हथेलियों पर जिया !
– अमृता श्री
हाँ ऐसे ही थे वो ! आवाज़ ऐसी कि दूर तक गूंजे और निर्देश उनके, जैसे महकमे में कानों में ठहर जाये पर हमारे लिए वो बस पापा ही थे, जिनसे हमे कभी डर नहीं लगा ,हाँ मम्मी बोलती कम थीं पर उनकी ऑंखें हमे बड़ी आसानी से बता देती कि हमे करना क्या है ?
कभी तेज़ आवाज़ नहीं सुनी उनकी | सुनी उनसे, उनके बचपन की ढेर सारी मस्ती भरी कहानियां | रात में उनपर पैर चढ़ाकर सोते हम भाई -बहन ,अपनी अपनी पसंद की कहानियां सुनते | अंगूठा प्रसाद ,शेख चूलिया ,दाना वाली चिड़िया ,नानी के घर मोटा होने गया खरगोश…….. मेरी बेटी तक यह कहानियां पहुंची मुझसे| सुनाने का ऐसा ढंग ,लगता कि सामने हो रही हो बिलकुल ! हम खो जाते ,उन कहानियों में फिर परियां हमें खवाबों की दुनियां में पहुंचा जाती|कभी बिजली चले जाने का आभास नहीं हुआ हमें क्युकि हाथ के पंखे से हवा करते रहते वो !
हम तो बार्बी गुड़िया से ही मान जाते ,जब भी वो ऑफिसियल ट्रिप पर जाते पर भाई को मशीनगन चाहिए होती ,हमारी गुड़िया तो आ जाती पर उसका मशीनगन कभी नहीं आया ” हां कुछ उसका मनपसंद ज़रूर आ जाता | मशीन गन की खोज में लगा वो गाल पर हाथ रखकर पूछता ” पापा आप आ गए ,मेरा मशीन गन ?पापा कहते बहुत बड़ा था बेटा मालगाड़ी पर चढ़ा कर आया हूँ ,आ जायेगा कुछ दिन में | भाई बड़ी बड़ी आँख करके हमे चिढ़ाता पर हम तो अपनी गुड़िया में ही खुश थे |
मम्मी की नाराज़गी या किसी की लड़ाई से दुःखी हम अगर कभी रो पड़ते तो वो बस आवाज़ सहायक को आवाज़ लगा देते ” अरे जल्दी से कटोरा लेकर आओ ” हमारा रोना जारी रहता |
“अरे कितनी कीमती है यह आंसू ,हीरे जैसे कीमती ,ऐसे नहीं गिराओ ,गिराना है तो कटोरे में गिराओ | मैं इन्हें बेच कर खूब पैसे घर लाऊंगा| “कटोरे में एक आंसू इस आंख से एक आंसू उस आंख से जमा करते जाते ” और हम जल्द रोना भूलकर आंसू की बून्द का हिसाब करने लगते कि पापा ,अब कितना कमा लोगे इससे ?इसमें मेरे लिए ही कुछ लाना ,भाई को नही (अगर बात लड़ाई भाई से हुई तब) | पता नहीं था उस समय कि वो कटोरा जादुई था या वो जादूगर !
आज जब दुनिया की कठोरता का अहसास होता है ,तो आज भी अपने जादूगर को ढूंढती हूँ | बहुत ढूढ़ती हूँ ,नहीं मिलता वो कहीं !कहीं छुप गया है मेरी नज़रों से !
“दुनियां से जानेवाले जाने चले जाते है कहाँ ?कैसे ढूढ़े कोई उनको नहीं क़दमों के भी निशां “
जब लोगों को देखती हूँ कि कैसे रंग बदलते है तो याद आती है उस जादूगर की ! जब लोग आपके मन को चोट पहुंचाते है तो याद आती है उस जादूगर की | कुछ देर सुस्ता कर उनके पास बैठकर कुछ सुनने को ज़ी चाहता है ,कि कह दें आज भी कोई ऐसी बात कि तप्त ह्रदय को आराम मिल जाये ! सर को सहला दे प्यार से आज ,सीने से लगा ले आज भी ,बस कितने घावों को राहत आ जाये | पर जादू क्या बार बार होते है ?
सर पर जब हथेलियों का गर्म सा अहसास हुआ तो सर उठाकर देखा ,पति खड़े थे |
“क्या हुआ क्यों रो रहे हो ” बैचैन से हो उठे ” बताओ न क्या बात है ,क्या हुआ ?
क्या बताती आज किसी बात पर वो जादूगर याद आ गया मुझे ! बस सीने से लग कर रो पड़ी उनके !
अहसास हुआ बड़ा जादूगर जाते-जाते छोटे जादूगर को यहीं छोड़ गया मेरे पास ,उसके पास भी मेरे घावों का मरहम है ,शायद धीरे धीरे वो भी बड़ा जादूगर बनता जा रहा है !
मुझे तो अक्सर लगता है कि एक बाप चाहे कितना भी बिजी हो चाहे तो अपने बच्चे के पास कभी न भूलनेवाली यादों का पिटारा ज़रूर छोड़ सकता है | कल कभी आता नहीं तो आज ही बने आप माँ जैसे पापा !
–अमृता श्री
