जानती हो अम्मा तो जैसे रितेश गाड़ी में बैठा दूल्हा बनकर ,उसके जाने की नेग की ,फिर गाड़ी पर हाथ रखकर रोने लगी ,बहुत प्यार करती है रितेश से “जेठानी रमा ने नयी नवेली सुधा के कानो में फूंका ” रमेश यानि तेरे जेठ पहले ही इंजीनियरिंग करने निकल गए थे तो रितेश से ही ज्यादा लाड है इन्हें |
सुधा का मन ज़ोरो से घबड़ा गया | कितने किस्से सुने हैं सहेलियों से ,सासु माँ के पजेसिव होने के ,दिल थाम कर रह गयी वो !पढ़ी लिखी थी सोंच लिया किसी और के अनुभव के आधार पर वो अपनी ज़िंदगी की बुनियाद नहीं रखेगी |
माँ का बच्चे के प्रति प्यार है भी नहीं ,पर जब यह प्यार किसी और रिश्ते को पनपने ही न दे तो ध्यान देना जरुरी हो जाता है | धीरे धीरे उसे जेठानी रमा की बात में सच्चाई दिखने लगी | अम्मा हमेशा रमेश के नहीं बल्कि रितेश के मामलों में दखल देती | वो कौन सी शर्ट पहनेगा ? उसे क्या खाना चाहिए क्या नहीं ,एक छोटे बच्चे सा अम्मा जी निर्णय लेती | नाश्ते के समय दोनों से ज़रा हटकर तो बैठती पर ध्यान दोनों पर लगाए रखती | रितेश भी ऑफिस से आते सीधे अम्मा के पास जाते | छोटी छोटी बातों में रितेश अम्मा की सलाह लेते | रात में खाना खाने के बाद दोनों घर के मसलों पर ऐसे चर्चा करते कि आज इस पर बात नहीं की गयी तो भरी मुसीबत आ जाएगी |
बड़ा अजीब सा लगता सुधा को ! उसे लगता कहाँ आ फंसी वो दोनों माँ -बेटे के बीच ! दोनों के बीच अपने लिए जगह बनानां भी मुश्किल ! जबकि बड़े बेटे की ज़िंदगी एकदम संतुलित |
“रितेश कहाँ है बहु उससे जरुरी बात करनी है ” अम्मा ने उसके कमरे में घुसते ही पूछा |
जी वो नहा रहें हैं ” बाथरूम की तरफ इशारा करते हुए बोला |
“रितेश नहा कर मेरे कमरे में आ जाना ,जरुरी बात है ,अम्मा ने जोर से आवाज लगाई |
“अच्छा अम्मा ” अंदर से रितेश ने बोला |
बाहर आकर जब रितेश कपड़े बदलने लगे तो उससे रहा नहीं गया ” यह क्या ? मेरे सामने बात नहीं हो सकती ,क्या मैं पराई हूँ ” सुधा ने रूठते हुए कहा |
” नहीं अम्मा के कमरे में ही जाना होगा ,आखिर तुम्हारी बुराई तुम्हारे सामने तो नहीं की जा सकती ” उसे चिढ़ाते हुए रितेश में आंखे मारी और गुनगुनाते हुए निकल गया |
गुस्सा भी आया और प्यार भी !
खाने के बाद बिस्तर पर लेटी तो अम्मा का चेहरा घूम गया सामने | बाउजी के जाने के बाद अम्मा ने कैसे इन दोनों बच्चों को कैसे पाला होगा ? अपनी प्राइवेट नौकरी के दम पर बिना किसी के आगे हाथ फैलाये इन्होने अपने दोनों बेटों को पढ़ाई में मदद की ,बच्चे भी होशियार निकले ,स्कालरशिप मिलती रही और बच्चे तमाम असुविधाओं के वावजूद अच्छी नौकरी में सेटल हो गए | अम्मा के भाई ने बिना अम्मा को बताये और अपनी बीबी को बताये दोनों को आर्थिक सहायता समय समय पर दी | कल रात जब रितेश अपनी ज़िंदगी बताते बताते भावुक हो गए तो बोल दिया था उसे ! बड़े भाई ने इंजीनियरिंग किया तो बड़ी छोटी उम्र में वो घर से निकल गए थे पर छोटा बेटा ग्रेजुएशन भी साथ रह कर किया ,फिर बैंक की नौकरी शुरू की तो माँ का भावनात्मक सहारा बन गया था वो ! सब कुछ सोंच कर सुधा की आंखे भर आयी | उसने सोचा कि वो दोनों माँ बेटे में दूरियां कभी नहीं बढ़ाएगी ,वो कोशिश करेगी कि उसकी भी एक जगह बने पर कुछ बिगाड़ कर नहीं !
उसने दोनों की बातों में दखल देना छोड़ दिया | जब भी वो दोनों बातें करते उसका भी मन होता कि वो भी साथ में अपनी चपड़ चपड़ करे ,पर वो समय वो कुछ पढ़ने ,पैन्टिन्ग करने या टीवी देखने में लगा देती | न्यूज़ देखना उसे बड़ा पसंद था तो दुनिया की न्यूज़ में समय भागने लगता | फिर खाना बनाने का भी समय हो जाता | पति रितेश भी उसकी इन हरकतों को ध्यान से देख रहा था और अम्मा भी |
“यह क्या बात हुई रितेश ऑफिस से आया तो चाय देकर चली गयी ? बैठ साथ और पूछ दिन कैसा रहा ?यह आजकल की लड़किया इतनी सी बात समझ कोई न आती इन्हें! अम्मा की झड़प पड़ी | अँधा क्या चाहे दो आंख ! धीरे धीरे ए मना धीरे सब कुछ होत !वो अम्मा को अलग नहीं करना चाहती थी वो तो दोनों के साथ अपनी तिकड़ी बनानां चाहती थी !साथ बैठी तो जरूर पर ज्यादा दखल नहीं देती | मजा आने लगा था ज़िंदगी का !
“सुधा पता है ,थोड़ी दूर पर ही डोसे की नई दूकान खुली है ,चलो खिला लाता हूँ ” रितेश ने चहककर कहा |
सुधा की अम्मा की तरफ देखा और बोली ” आप अम्मा को खिला लाइये मेरे लिए पैक करा कर लेते आएयेगा |
अम्मा हैरान होकर उसे देखने लगी ,लाड सा आ गया उसपर ” बावली है क्या ,तू जा ,मेरे लिए पैक करा कर लेती आइयो |
“अम्मा जरा दूर ही है ,पडोसी राधा ने बताया ,ऐसा है तो तीनो चलते हैं ,धीरे धीरे जातें है ,और धीरे धीरे वापस भी आ जायेगे ,डोसा का डोसा ,वाक की वाक !” अम्मा की आंखे चमक गयी |
आज उसे ऑनलाइन डेटा काम के हज़ार रूपये मिले थे ,ड्रा करके अम्मा के हाथ में रख दिए और पैर छू लिए सुधा ने|
“यह क्या बहु ,तूने कमाए है तू खरचा कर ले ,अम्मा ने डपटते हुए कहा |
“अम्मा आज माँ सामने होती तो उन्हें देती ,आप भी माँ समान है ,आप रखोगी तो मुझे अच्छा लगेगा ” भींगे गले से बोल पड़ी सुधा |
पैसे में से 100 का नोट निकालकर अम्मा ने उसे सारे पैसे तो वापस कर दिए पर ले लिया उससे थोड़ा सा आत्मविश्वास ! बहु मेरे बेटे को मुझसे छीनने नहीं आयी है बल्कि हम दोनों के साथ कोई और भी जुड़ गया है | दो से तीन साथी हो गए है |
“रितेश बहु कहाँ है ,ज़रा बात करनी है ” अम्मा कमरे में घुसी |
“अभी आयी अम्मा जी ,बस नहा कर बाल सूखा रही हूँ ” बाथरूम से सुधा ने कहा |
जल्दी कर ,तू भी न ! पूजा कर नाश्ता कर ,और मेरे कमरे में आ ,बड़ी मजेदार बात बतानी है तुझे ,पेट में उमड़ घुमड़ रहा है ” अम्मा ने कहा |
मुझे भी बता अम्मा ” रविवार को बिस्तर पर औंधे पड़े रितेश ने बिस्तर से मुँह उठाया |
“तू क्या करेगा जानकर ,महिलाओं की बात है ” अम्मा कहकर सर्र से कमरे से निकल गयी |
“नहीं अम्मा के कमरे में ही जाकर बात करनी होगी ,आखिर तुम्हारी बुराई तुम्हारे सामने तो नहीं की जा सकती ” सुधा ने अपने गीले बाल रितेश पर झटकते हुए रितेश को चिढ़ाया और गुनगुनाते हुए कमरे से निकल गयी |
-अमृता श्री
