जब आंख जले ख्वाबों से और राहत बैचनीयों में मिले ,
“श्री” फिर मिल लेना तुंम खुद से उस दिन !
जब घनघोर अँधेरा छाया हो ,हाथ को हाथ नजर न आया हो ,
ऐसे में जब चुपके से कोई दीप आस का जल जाये ,
“श्री” फिर मिल लेना तुंम खुद से उस दिन !
किसीने जब तुमपर शब्दों का बाण चलाया हों, मन आहत हो ,घबराया हो !
ऐसे में जब कोई भुला हुआ गीत लबों पर आ जाये !
“श्री” फिर मिल लेना तुंम खुद से उस दिन !
–अमृता श्री
Bahut khoob
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