कई बार झिड़कता है ,
बिन बात बिफरता है ,
वो पिता है ,शायद
जमाने से डरता है |
वो पिता है दोस्तों, क्या वो शब्दों में सिमटता है ?
सबके ख्वाबों का भार ,
खुद पर लेकर
एक एक पैसे का हिसाब रखता है ,
बनियान अगले महीने ले लूंगा अपनी ,
कमीज़ के अंदर से वैसे भी कहाँ दिखता है ?
वो पिता है दोस्तों, क्या वो शब्दों में सिमटता है ?
उससे रसोई है,राशन है ,
घर में एक अनुशासन है !
कभी बातें मीठी लगे उसकी
कभी लगे कोई भाषण है |
पर सच कहूं यारों , सब खरा खरा ही कहता है ,
वो पिता है दोस्तों, क्या वो शब्दों में सिमटता है ?
उससे आश्वासन है ,आस है ,
जीवन में लगे कुछ खास है ,
हंसकर वो मिश्री घोलता है ,
शब्द तौल तौल कर वो बोलता है |
वो पिता है दोस्तों, क्या वो शब्दों में सिमटता है ?
अकेलेपन में कई डरों से वो लड़ता है ,
घर की चिंता में कई बार बिखरता है ,
अगली सुबह फिर वही सबको ,
किसी नायक सा,शांत मिलता है |
वो पिता है दोस्तों, क्या वो शब्दों में सिमटता है ?
–अमृता श्री

बहुत सुंदर
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