वो हंसती है ,
तो ,
कहीं गहरे ,
दर्द का एक कोना ,
खामोश हो जाता है |
वो चुप रहती है ,
तो ,
कहीं गहरे ,
हंसी का एक कोना ,
आबाद हो जाता है |
उसके हंसी में भी ,
एक दर्द छिपा है ,
उसके आंसुओं में भी ,
अक्सर
एक कतरा ख़ुशी
का आज़ाद हो जाता है !
हारना सीखा नहीं
उसने ,
तो ,
जब भी ,
एक लहर मायूसी की उसे
घेरती है ,
तोड़ती है !
कहीं गहरे ,
जीतने का ज़ज्बा ,
सर उठाता है ,
साथ -साथ उसके ,
और फिर ,
जीने लगती है वो !
सांसे कामयाबी की ,
लेने लगती है वो !
-अमृता श्री

जीने लगती है वो, और उसे जीता देख जीने लगते हैं हम।
हां, पर हमारा जीना उसके जीने पर निर्भर है।
और उसे ये ज्ञात है, इसलिए, जीने लगती है वो।।
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