तेरी यादों में खुद को भुलाये बैठे हैं ,
दिल को यह क्या रोग लगाए बैठे हैं ?
उन्हें हर बात पर शिकवा है, हर बात पर गिला ,
और हम हैं कि हर बार खुद को आजमाए बैठे हैं |
उसकी आँखों में कभी डूबेंगे कभी तैरेंगे ,
सपने भी आजकल यही सपना सजाये बैठे हैं !
हर सितम लगे आखिरी सितम हो उनका ,
सोचकर हम भी यहाँ डेरा जमाये बैठे हैं !
BY अमृता श्री
