सुनो न ,
वो जो नज़रें तेरी ,
जिसे ढूंढ रही है ,
वो बादलों के पीछे ,
छिपा है ,
जान लो न तुम !
सुनो न ,
लाख शिकायते कर रही हो ,
मनुहार कर उससे लड़ रही हो ,
वो बादलों के पीछे ,
अड़ा है ,
मान लो तुम !
और वो हो भी क्यों ना ,
बादलों के पीछे ?
सोचो न क्यों तेरी
हर फरियाद से ,
है वो आंखे मींचे !
कुछ तो कहो ना ?
मौन हो तुम ,
छोड़ दो आज मैं ही बताता हूँ ,
हमसफ़र हूँ तुम्हारा
राज़ की बात खुद तक ,
मैं भी कहाँ रख भी पाता हूँ ?
सुनो न ,
मान लो तुम ,
बैर रखता है तुमसे थोड़ा
और फिर घबड़ा भी गया है |
रूप की तेरी रोशनी से ,
बस सकुचा गया है |
तुझमे जो भोलापन है ,
जो सादगी है ,
जल्द वो भी जान जायेगा ,
करवा चौथ का दिन हैं जानम ,
वो भी सामने आएगा ,
मान जायेगा ,
मान लो तुम !
-अमृता श्री