ख़ामोश अकेले जलते क्यों हो ? ए दीपक खुद को छलते क्यों हो ?
छाया है घनघोर अँधेरा ,
लोग कर रहें तेरा -मेरा ,
ला पाओगे क्या नया सवेरा ?
तिल -तिल कर फिर तुम मरते क्यों हो ?
ए दीपक खुद को छलते क्यों हो ?
जीवन की इस भागदौड़ से
जब थक गया आज मन मेरा ,
याद आ गया निर्भय जलना तेरा ,
आज समझ में आया मुझको ,
रोशनी सब में तुम भरते क्यों हो !
निर्भय तम से भिड़ते क्यों हो !
लाख मुश्किलें हो जीवन में ,
हार नहीं अब मैं मानूँगी,
तुमको अपना गुरु मानकर जीवन पथ पर बढ़ जाउंगी !
शायद रोशनी छोटी हो मेरी ,थोड़ा तम तो हर जाउंगी ….
-अमृता श्री
बेहद प्रभावशाली रचना
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behad pyaraa
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Khamos akele jalte kyon ho
Bahot hi achhi kavita. Khaskar pahle do lines ka koee jawab nahi. Lekin shabdon ke sagar me aur gote lagayen to kavita puri ki puri lajawab ho jaegi
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