रस्मे उल्फ़त कुछ यूँ निभा गया कोई,
हँसते लबों से आंसू छुपा गया कोई !
तुमने हक में उससे कुछ ख़ास लम्हें मांगे ,
और हंस कर ज़िंदगी लुटा गया कोई !
कसौटी पर तुमने हर बार उसे जांचा -परखा ,
और हर बार यह रस्म निभा गया कोई !
उसकी आँखों में एक बेबसी जो देखी ,
गम भूलकर अपना ,उसे गले लगा गया कोई !
उसके चेहरे की लकीरों में दास्ताँ छिपी थी कई
आज फिर से आँखों को रुला गया कोई !
-अमृता श्री

उम्दा
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