उसकी यादों को हमने ज़हन में समेटे रखा ,
वो खुशबू की तरह मुझमे बिखरता चला गया !
उसके लबों पर नाम किसी रकीब का था “श्री ” ,
जानकर मैं भी फिर खुद में सिमटता चला गया !
उसकी हर बात ने हर बार किये टुकड़े मेरे हज़ार ,
और बेफिक्र वो ,अपने किस्से सुनाता चला गया !
उसे भूलने की कोशिश नाकाम हुई हर बार,
यादें उसकी जो पिघली वो हर शै में घुलता चला गया!
हर रिश्ते को बावफ़ा निभाया हमने ,
और वक़्त था कि मुझे ही आजमाता चला गया !
-अमृता श्री
