हाँ ,एक बेमुरव्वत ख़्वाब हूँ मैं ,
कांच सा हूँ ,चुभता ही जाऊंगा !
मुझमे खुद को ना तलाशना कभी ,
आईना हूँ तुमसे सच बोल जाऊंगा !
धागों की जद में न ठहरा हूँ कभी ,
पैरहन हूँ मैं शिकस्ता, टिक ना पाउँगा !
तेरी ज़ुल्फ़ों की कैद में रहूं , मैं क्यूँकर ?
वक़्त सा हूँ ,मुट्ठियों से फिसल जाऊंगा !
-अमृता श्री
* कठिन शब्द
पैरहन -कपड़ा
शिकस्ता-फटा हुआ

बहुत खूबसूरत 🌻🌻
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