सिलवटें जो है ,
पेशानियों पर,
करवटें हैं वो जिंदगी की !
थकी आँखों से शाम की गोधूलि में
दरवाजे पर खड़ी जब मुझको
मिलती हो तुम ,
बड़ी खूबसूरत लगती हो तुम !
ज़ुल्फ़ों के बीच जो ,
कुछ सफेद सी लटें ,
किसी शैतान बच्चे सी जब ,
मानती नहीं है तुम्हारी बातें ,
बालों के साथ साथ उड़कर ,
हवाओं से करने लगती है बातें ,
जुड़े में बांधकर फिर
हाथों से जब इनको कसती हो तुम!
बड़ी खूबसूरत लगती हो तुम !
कोई कोशिश जो ,
दबाना चाहती हो तुमको ,
कोई कोशिश जो,
झुकाना चाहती हो तुमको !
अनगर्ल बातों को उनके ,जब ,
बेपरवाह तुम हवा में उड़ाती हो ,
अपनी खूबसूरती का पैमाना ,
तब तुम खुद बनाती हो ,
जिम्मेदारियों से मिले ,
चेहरे के निशानों से ,
गर्व से गले जब मिलती हो तुम !
बड़ी खूबसूरत लगती हो तुम !
तेरी आँखों के गिर्द
घिरे ,
ये काले से घेरे ,
कल की चिंता है ,सबको बता जाते है ,
हाले दिल तुम्हारा, सबको जता जातें हैं,
तेरी आँखों के गिर्द घिरे ,
ये काले से घेरे !
डट कर फिर भी कल के सवेरे से,
हँसते हुए जब मिलती हो तुम,
बड़ी खूबसूरत लगती हो तुम !
–अमृता श्री

khub 👌
LikeLike
बहुत सुंदर कविता लिखी है
LikeLiked by 1 person
वाह-वाह…!
🙏🙏🙏
LikeLike